21 March 2009

मेरा पहला पोस्ट

यशवंत भैया (भड़ास बाले) ने कई बार कहा कि अपना ब्लॉग बना लो। सो पिछले हफ्ते ही इसे बनाया। तब से कुछ लिखने से बचता आ रहा था। पहले से ही इतने ब्लॉग बने पड़े हैं। सोचता हूं कि मेरा ब्लॉग कौन देखेगा। क्योंकि मेरे लिए ब्लॉग कोई डिजिटल डायरी नहीं है जिसमें मैं अपनी बातें लिखता रहूं। मेरे लिए यह संसार के लोगों से जुड़ने का जरिया है। जिनसे मैं अपने देश की, अपने समाज की समस्याएं और उसमें हम युवाओं की भूमिका की बात साझा कर सकूं। हालांकि मैं कितना जुड़ पाऊंगा, पता नहीं। लेकिन, मेरा उद्देश्य यही रहेगा।
"त्यागपथ", यही नाम है मेरे ब्लॉग का। मैं युवा हूं। 27 साल उम्र है मेरी। पेशे से पत्रकार हूं। असंतुष्ट हूं। नौकरी से नहीं, पैसे की वजह से भी नहीं। बल्कि, इस वजह से क्योंकि मैं सिर्फ अपने लिए जी रहा हूं, जो मेरा उद्देश्य नहीं है। सड़क पर निकलता हूं तो बाराखंभा रेड लाइट पर दो पैसे के लिए लोहे के जंजीरों से खेलती दो साल की रेड लाइट वाली 'मुनिया' का बचपन कचोटता है। मुंबई में उत्तर भारतीय लोगों को पिटते देख देश की राजनीति पर रो पड़ता हूं। कल तक एक-दूसरे को गाली देने वाले लालू और पासवान की गलबहियां करती फोटों अखबारों में देख उन लाखों लोगों पर चींखने का मन होता है, जो उन्हें फिर वोट देंगे।
इन स्थितियों पर खुद से पूछता हूं कि साठ फीसदी युवा वोटर वाले इस देश में कहां हैं युवा, जो इनसे लड़ने बाहर नहीं निकलना चाहते। क्यों नहीं किसी एक बिंदू पर हम सब मिलकर साथ खड़े हो जातें? कई युवा मित्र हैं जिनके सीने में आग धधक रही है। जो कुछ करना चाहते हैं। कई कर भी रहे हैं। यकीं मानिए, हम सभी के दिलों में एक ही बात चल रही है। बस एक वक्त पर एक साथ खड़े होने की जरूरत है। हम युवाओं की साथ निकलने वाली एक हुंकार "उनलोगों" को मजबूर करने के लिए काफी है। अपनी ताकत पहचानो। "त्यागपथ" पर मिलकर दो कदम चलो, जो हम चाहेंगे वही होगा।

परिन्दे अब भी पर तोले हुए हैं,
हवा में सनसनी घोले हुए हैं।
तुम्हीं कमजोर पड़ते जा रहे हो,
तुम्हारे ख्वाब तो शोले हुए हैं।
(दुष्यंत कुमार की पंक्तियां)

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